Tuesday, May 31, 2011

बचपन

दिखती नहीं चाँद पे बुढिया

लाल परी और सलोनी गुडिया

छिप छिप खाना अमचूर की पुडिया

मोती से दिन रात की लड़ियाँ

बाते करना बैठ मुंडेरी

ले हाथों में मीठी गंडेरी

दिन कटता था पेड़ की डाली

दादी कहती मुझे गिलहरी

खेतों खेतों भागे फिरना

जंगल जंगल बातें करना

धारों में मछली सा तिरना

बनजारों सा घर-घर फिरना

छोटी बातों पर नैन भिगोते

फिर भी घर वाले हमें मनाते

बन बहेलिया जाल बिछाते

चाचा कितनी जुगत भिडाते

हाथ न आती ऐसी चिड़िया

थी बाबा की लाड़ली बिटिया

बादल लाते बरखा की चिठिया

झोली भर गुड धानी मिठिया

कच्चे पक्के अमरूद का जादू

आम पे गाती कोयल कुहू

खोया बचपन ढूँढ रही हूँ

जाने कब से भटक रही हूँ

लौटा दो कागज़ की किश्ती

मिटटी के घरोंदों वाली बस्ती

थी अनमोल नहीं वो सस्ती

बचपन की निश्चिन्त सी मस्ती

7 comments:

  1. jane ab kab , kahan milegi wo kagaj ki kashti wo baarish ka pani aur wo kahani

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  2. पूरा बचपन ही चित्रित कर दिया है

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  3. bahut hi pyaari rachanaa.bachapan ko yaad dilati hui.badhaai

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  4. सपनो में उतर रहा है बचपन खोया हुआ बचपन

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  5. बचपन की याद दिलाती हुई रचना , बधाई

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  6. पूरा बचपन ही चित्रित कर दिया है बधाई

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  7. kabhi mere blog www.aruncroy.blogspot.com par padhariye

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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