दिखती नहीं चाँद पे बुढिया
लाल परी और सलोनी गुडिया
छिप छिप खाना अमचूर की पुडिया
मोती से दिन रात की लड़ियाँ
बाते करना बैठ मुंडेरी
ले हाथों में मीठी गंडेरी
दिन कटता था पेड़ की डाली
दादी कहती मुझे गिलहरी
खेतों खेतों भागे फिरना
जंगल जंगल बातें करना
धारों में मछली सा तिरना
बनजारों सा घर-घर फिरना
छोटी बातों पर नैन भिगोते
फिर भी घर वाले हमें मनाते
बन बहेलिया जाल बिछाते
चाचा कितनी जुगत भिडाते
हाथ न आती ऐसी चिड़िया
थी बाबा की लाड़ली बिटिया
बादल लाते बरखा की चिठिया
झोली भर गुड धानी मिठिया
कच्चे पक्के अमरूद का जादू
आम पे गाती कोयल कुहू
खोया बचपन ढूँढ रही हूँ
जाने कब से भटक रही हूँ
लौटा दो कागज़ की किश्ती
मिटटी के घरोंदों वाली बस्ती
थी अनमोल नहीं वो सस्ती
बचपन की निश्चिन्त सी मस्ती
jane ab kab , kahan milegi wo kagaj ki kashti wo baarish ka pani aur wo kahani
ReplyDeleteपूरा बचपन ही चित्रित कर दिया है
ReplyDeletebahut hi pyaari rachanaa.bachapan ko yaad dilati hui.badhaai
ReplyDeleteसपनो में उतर रहा है बचपन खोया हुआ बचपन
ReplyDeleteबचपन की याद दिलाती हुई रचना , बधाई
ReplyDeleteपूरा बचपन ही चित्रित कर दिया है बधाई
ReplyDeletekabhi mere blog www.aruncroy.blogspot.com par padhariye
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