मुहब्बत या कि अदावत ये क्या चाहता है
खबर है मेरा रकीब मुझसा होना चाहता है
लगाकर बाहर से सांकल इक रोज चला गया था
पुकारता है मुसल्सल वो आना चाहता है
धरती से अब तो चाँद सितारे हैं आगे मंजिल
आदमीयत से मगर इंसा भागना चाहता है
हूँ मैं गुनाहगार तेरे निशाने पर भी मैं हूँ
क्यूंकर तू रस्में दोस्ती की निभाना चाहता है
एहसान यूँ जताए है एक आवारा बादल
सूखा मन रीती गागर से भिगोना चाहता है
achhi gazal
ReplyDeletesachmuch bahut hi accha likhti hai aap!mere blog par bhi aaye aane ke liye yaha click kare- "samrat bundelkhand"
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