निराले जग के परदों में छुपी यह बात सारी है
कहीं पर आग भारी है कहीं पानी की बारी है
तराशे जाता जो पलछिन , सजाता है कभी उसको
किसी मिट्टी की मूरत का वही सच्चा पुजारी है
दबे पांवों से आएगी ख़ुशी भी गुनगुनायेगी
तसल्ली खुद को देनी है कि अब मेरी ही बारी है
सितारे हैं तो झोली में सताया पर अंधेरों ने
गगन बांटेगा क्या किस्मत जो लगता खुद भिखारी है
इबादत की थी मीरा ने कबीरा बुन गए चादर
सजाये मंच बैठा जो कथित दावा पुजारी है
खिलाडी खुद को हम समझे लगे दिन रात रहते हैं
मगर कोई न यह माने खुदा असली मदारी है
बिछाकर जाल बैठा जो मचानों पर जमा आसन
दिलेरी उसकी क्या कहिए बड़ा शातिर शिकारी है
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------ वंदना
कहीं पर आग भारी है कहीं पानी की बारी है
तराशे जाता जो पलछिन , सजाता है कभी उसको
किसी मिट्टी की मूरत का वही सच्चा पुजारी है
दबे पांवों से आएगी ख़ुशी भी गुनगुनायेगी
तसल्ली खुद को देनी है कि अब मेरी ही बारी है
सितारे हैं तो झोली में सताया पर अंधेरों ने
गगन बांटेगा क्या किस्मत जो लगता खुद भिखारी है
इबादत की थी मीरा ने कबीरा बुन गए चादर
सजाये मंच बैठा जो कथित दावा पुजारी है
खिलाडी खुद को हम समझे लगे दिन रात रहते हैं
मगर कोई न यह माने खुदा असली मदारी है
बिछाकर जाल बैठा जो मचानों पर जमा आसन
दिलेरी उसकी क्या कहिए बड़ा शातिर शिकारी है
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------ वंदना
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार जून 04, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteवाह
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
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ReplyDeleteदबे पांवों से आएगी ख़ुशी भी गुनगुनायेगी
तसल्ली खुद को देनी है कि अब मेरी ही बारी है
इसी तसल्ली ने ज़िंदगी आसान कर दी है....
बहुत बहुत शुक्रिया
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