Pages

Saturday, June 1, 2019

ग़ज़ल

निराले जग के  परदों में छुपी यह बात सारी है
कहीं पर आग भारी  है कहीं पानी की बारी है

तराशे जाता जो पलछिन , सजाता  है कभी उसको
किसी मिट्टी की मूरत का वही सच्चा पुजारी है

दबे पांवों से आएगी ख़ुशी भी गुनगुनायेगी
तसल्ली खुद को देनी है कि अब मेरी ही बारी है

सितारे हैं तो झोली में सताया पर अंधेरों ने
गगन बांटेगा क्या किस्मत जो लगता खुद भिखारी है

इबादत की थी मीरा ने कबीरा बुन गए चादर
सजाये मंच बैठा जो कथित दावा पुजारी है

खिलाडी खुद को हम समझे लगे दिन रात रहते हैं
मगर कोई न यह माने खुदा असली मदारी है

बिछाकर जाल बैठा जो मचानों पर जमा आसन
दिलेरी उसकी क्या कहिए  बड़ा  शातिर शिकारी है 
   -
------ वंदना

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार जून 04, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete

  2. दबे पांवों से आएगी ख़ुशी भी गुनगुनायेगी
    तसल्ली खुद को देनी है कि अब मेरी ही बारी है
    इसी तसल्ली ने ज़िंदगी आसान कर दी है....

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया

      Delete

आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर