नीरस मुलाकातों का क्या करें
जंग लगे जज्बातों का क्या करें
जिनके साये में धूप सताए
उन सूखे दरख्तों का क्या करें
जो सुलझ सुलझ कर उलझ रहे हों
उन बदगुमां रिश्तों का क्या करें
ईश्वर भी परेशान हैं जिनसे
सफेदपोश भगतों का क्या करें
दे कर आसमान छीन ली जमीं
स्वप्नमय सौगातों का क्या करें
रगों में कसक सी टीस रही हैं
बेमानी रवायतों का क्या करें
कर्ज के मानिंद सिसके साँसे
बेमियादी किश्तों का क्या करें
मरने के बाद हासिल इन्साफ
कहो इन अदालतों का क्या करें
रगों में कसक सी टीस रही हैं
ReplyDeleteबेमानी रिवाजों का क्या करें
बहुत खूबसूरत.....
वाह बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवंदना जी
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर जब भी आया …
प्रस्तुत रचना भी सुंदर है
ईश्वर भी परेशान हैं जिनसे
सफेदपोश भगतों का क्या करें
रगों में कसक सी टीस रही हैं
बेमानी रिवाजों का क्या करें
कर्ज के मानिंद सिसके सांसें
बेमियादी किश्तों का क्या करें
अच्छे भाव हैं … लेकिन ग़ज़ल कहने से पहले ग़ज़ल के शिल्प को समझना आवश्यक है … और रुचि के साथ साधना करते रहने से ग़ज़ल कहना आ ही जाता है …
लगे रहिए … शुभकामनाएं हैं ।
♥श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteजो सुलझ सुलझ कर उलझ रहे हों
ReplyDeleteउन बदगुमां रिश्तों का क्या करें
ईश्वर भी परेशान हैं जिनसे
सफेदपोश भगतों का क्या करें
दे कर आसमान छीन ली जमीं
स्वप्नमय सौगातों का क्या करें
रगों में कसक सी टीस रही हैं
बेमानी रवायतों का क्या करें
कर्ज के मानिंद सिसके साँसे
बेमियादी किश्तों का क्या करें
मरने के बाद हासिल इन्साफ
कहो इन अदालतों का क्या करें'
जो पंक्तियाँ मुझे भीतर तक भिगो देती है उन्हें लिखती हूँ.देखा.........लगभग पूरी कविता को दुहरा दिया है मैंने.और ये भी...........
जंग लगे जज्बातों का क्या करें
जिनके साये में धूप सताए
उन सूखे दरख्तों का क्या करें
बहुत प्यारा लिखा है.ये भी जीवन का एक रूप है.हर रंग की तरह काला रंग क्या कम अहम है?
सूखे दरख़्त की अपनी ख़ूबसूरती है.
समय पर न मिलने वाला न्याय भी अहम है..........लोग गहरी नींद में ही गाफिल न रहे ...इसलिए.
है न? अच्छा लिखने के लिए?????बधाई...प्यार...धार दो और अपनी कलम को....कि चीर दे भीतर तक.