आज हम हर्ष और उल्लास से स्वाधीनता दिवस मना रहे हैं किन्तु कहीं कुछ खटक भी रहा है और वह है एक प्रश्न कि क्या हम स्वाधीन हैं ?
स्वाधीन शब्द बना है स्व और अधीन से मिलकर .स्वाधीन होने के लिए हमें ‘स्व’ के अधीन होना होगा और तब हमें पहचानना होगा ‘स्व’ को .यह आसान काम नहीं है क्योंकि हम तो ‘पर’ को देखने में व्यस्त हैं इतने व्यस्त कि स्व पर उठती अँगुलियों को मुट्ठी में कैद कर ‘पर’ के भ्रष्ट आचरण पर आंसू बहाते रहते हैं .
स्वतंत्र रहने के लिए ‘स्व’ का तंत्र एक अनुशासन की अपेक्षा रखता है .स्वानुशासन के बिना स्व-तंत्र कभी स्थापित हो ही नहीं सकता .अनुशासन के बंधन को स्वीकार कर ही स्वतंत्र होने के उत्सव को मनाया जा सकता है .यहाँ उद्धृत करना चाहती हूँ गुप्त जी के ‘साकेत’ के अंश ....
सीता और राम के संवाद .....
बंधन ही का तो नाम नहीं जनपद है ?देखो कैसा स्वच्छंद यहाँ लघु नद है
इसको भी पुर में लोग बाँध लेते हैं हाँ वे इसका उपयोग बढ़ा देते हैं
पर इससे नद का नहीं उन्हीं का हित है ,पर बंधन भी क्या स्वार्थ हेतु समुचित है
मैं तो नद का परमार्थ इसे मानूंगा हित उसका उससे अधिक कौन जानूंगा
जितने प्रवाह हैं बहें अवश्य बहें वे ,निज मर्यादा में किन्तु सदैव रहें वे
केवल उनके ही लिए नहीं यह धरणी है औरों की भी भार धारिणी भरणी
जनपद के बंधन मुक्ति हेतु है सबके
यदि नियम न हो उच्छिन्न सभी हों कबके
जब हम सोने को ठोक पीट गढते हैं
तब मान मूल्य सौंदर्य सभी बढते हैं
सोना मिटटी में मिला खान में सोता
तो क्या इससे कृत कृत्य कभी वह होता
हाँ तब अनर्थ के बीज अर्थ बोता है
जब एक वर्ग में मुष्टि बद्ध वह होता है
जो संग्रह करके त्याग नहीं करता है
वह दस्यु लोक धन लूट लूट धरता है
निज हेतु बरसता नहीं व्योम से पानी
हम हों समष्टि के लिए व्यष्टि बलिदानी
देवत्व कठिन दनुजत्व सुलभ है नर को
नीचे से उठना सहज कहाँ ऊपर को
हम सुगति छोड़ क्यों कुमति विचारें जन की
नीचे ऊपर सर्वत्र तुल्य गति मन की
जनपद के बंधन मुक्ति हेतु है सबके
ReplyDeleteयदि नियम न हो उच्छिन्न सभी हों कबके
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना.....
हाँ तब अनर्थ के बीज अर्थ बोता है
ReplyDeleteजब एक वर्ग में मुष्टि बद्ध वह होता है
जो संग्रह करके त्याग नहीं करता है
वह दस्यु लोक धन लूट लूट धरता है
waah, bahut hi badhiyaa
बहुत सही लिखा है आपने।
ReplyDelete--------
स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
कल 17/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत ही बढि़या ।
ReplyDeleteवंदना जी......हमारे ब्लॉग पर आने का और हौसला बढ़ने का तहेदिल से शुक्रिया..........आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा......बहुत अच्छा लिखा है आपने....
ReplyDeleteस्वतंत्र रहने के लिए ‘स्व’ का तंत्र एक अनुशासन की अपेक्षा रखता है .स्वानुशासन के बिना स्व-तंत्र कभी स्थापित हो ही नहीं सकता .अनुशासन के बंधन को स्वीकार कर ही स्वतंत्र होने के उत्सव को मनाया जा सकता है |
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत सार्थक रचना |
Man ko aahladit kar gaya . fir se manthan ka aamantran de gaya aapka post . shubhkamna
ReplyDeleteहम सब देशप्रेमी यह प्रश्न करता है कि गोरो (अंगरेजों )की गुलामी से तो हम स्वतंत्र हो गय परन्तु चोरो- उचक्कों की गुलामी से कब स्वतंत्र होंगे।
ReplyDeleteस्वतंत्र रहने के लिए ‘स्व’ का तंत्र एक अनुशासन की अपेक्षा रखता है .स्वानुशासन के बिना स्व-तंत्र कभी स्थापित हो ही नहीं सकता
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स्वतंत्र नहीं हम स्वछन्द होते जा रहे हैं बडे बडॆ घोटाले और भ्रष्टाचार करने के लिये
वंदना जी बहुत ही सुन्दर पोस्ट बधाई
ReplyDeleteअच्छा लिखती हैं
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें आपके लिए !
इस दुर्योधन की सेना में सब शकुनी हैं ,एक भी सेना पति भीष्म पितामह नहीं हैं ,शूपर्ण -खा है ,मंद मति बालक है जिसे भावी प्रधान मंत्री बतलाया समझाया जा रहा है .एक भी कृपा -चारी नहीं हैं काले कोट वाले फरेबी हैं जिन्होनें संसद को अदालत में बदल दिया है ,तर्क और तकरार से सुलझाना चाहतें हैं ये मुद्दे .एक अरुणा राय आ गईं हैं शकुनियों के राज में ,ये "मम्मीजी" की अनुगामी हैं इसीलिए सरकारी और जन लोक पाल दोनों बिलों की खिल्ली उड़ा रहीं हैं.और हाँ इस मर्तबा पन्द्रह अगस्त से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है सोलह अगस्त अन्नाजी ने जेहाद का बिगुल फूंक दिया है ,मुसलमान हिन्दू सब मिलकर रोजा खोल रहें हैं अन्नाजी के दुआरे ,कैसा पर्व है अपने पन का राष्ट्री एकता का ,देखते ही बनता है ,बधाई कृष्णा ,जन्म दिवस मुबारक कृष्णा .....बहुत सार्थक सौदेश्य पोस्ट वंदना जी ,सकारात्मक ऊर्जा से संसिक्त ,ऐसा ही लिखती रहिये .... ram ram bhai
ReplyDeleteशनिवार, २० अगस्त २०११
कुर्सी के लिए किसी की भी बली ले सकती है सरकार ....
स्टेंडिंग कमेटी में चारा खोर लालू और संसद में पैसा बंटवाने के आरोपी गुब्बारे नुमा चेहरे वाले अमर सिंह को लाकर सरकार ने अपनी मनसा साफ़ कर दी है ,सरकार जन लोकपाल बिल नहीं लायेगी .छल बल से बन्दूक इन दो मूढ़ -धन्य लोगों के कंधे पर रखकर गोली चलायेगी .सेंकडों हज़ारों लोगों की बलि ले सकती है यह सरकार मन मोहनिया ,सोनियावी ,अपनी कुर्सी बचाने की खातिर ,अन्ना मारे जायेंगे सब ।
क्योंकि इन दिनों -
"राष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,महाराष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,
मनमोहन दिल हाथ पे रख्खो ,आपकी साँसे अन्नाजी .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Saturday, August 20, 2011
प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/