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Saturday, December 29, 2012

दोहे (नववर्ष )



पल पल लेखा मांगता , गुजरे पल का हाल
यूँ पिछले पञ्चांग से , उतरे बीता साल


मन तो मलिन उदास है , कर पाते कुछ खास
बीता बरस बाँट चुका , अब आगत से आस


विरंग किसी कपड़े सा उतर गया इक साल 
जाते जाते  दे गया मन को ढेर सवाल 


भींत गिरे अभिमान की , छूटे वाद विवाद
पौध लगाएं प्रेम की , कर ऐसे संवाद


देख पेड़ से झर रहे , पीले पीले पात
जैसे हमसे कह रहे , बदलेंगे हालात


फिर झिलमिल वो रोशनी , लाई  नव संकेत
सरक न जाये ध्यान धर , यह मुट्ठी की रेत

प्यार और विश्वास के , मौसम लाया साथ
अब देरी किस बात की , थाम बढ़ाकर हाथ


रंग बिरंगी रुत नई , गूँथे गजरे हार
मौसम उत्सवमय हुआ , धार नया श्रृंगार 




Sunday, December 16, 2012

समाज कंटक


ओ रे काँटे
मैनें तो अब तक
यही जाना था
रखता है धार
तू स्वजनों के रक्षार्थ
पालता है स्वप्न
कोमल फूलों के हितार्थ
चीर देता है अरमान
उन हाथों के
जो करते हैं छेड़छाड़
तेरे उद्भव तेरे आधार के साथ
किन्तु देखती हूँ अब
कि तू लहू का दीवाना है
खेलता है खूनी खेल
तोड़ कर दिलों के मेल
हँसता मुस्कुराता है
तौलता है अपनी तुला पर
औरों का स्वाभिमान
सरक जाता है
रिश्तों के बीच गहरे
देता है जख्म 
जो सिर्फ सावन भादों नहीं
रहते हर मास हरे
इन जख्मों के सूखने से पहले
पैना लेता है नाखून
मौका मिलते ही
फिर खरोंच देने के लिए