अपने विहंगम पंख फैलाये तेजी से जीवन संध्या की ओर बढ़ते लोगों ने तीर्थ स्थलों के भ्रमण की योजना बनाई । इसी क्रम में देवप्रयाग पहुंचे तो एक गाइड आदतन अपनी रौ में बोले जा रहा था ....
"यहाँ भागीरथी और अलकनंदा का संगम है । यहीं से गंगा प्रारंभ होती है । ये दोनों नदियाँ यहाँ क्रमश : सास बहू के नाम से जानी जाती हैं । अब टिहरी बाँध बन जाने के कारण भागीरथी का प्रवाह कुछ कम हो गया है ...."
"हाँ भाई आजकल तो बहुएँ ही उछलकूद मचाती हैं सास तो ....."एक वय-प्राप्त व्यक्ति ने जुमला उछाला । "
"नहीं भाई साहब यह तो भागीरथी ने जनहित गंभीरता धारण कर ली है । इससे न तो भागीरथी उपेक्षित हुई है और न अलकनंदा की चंचलता लांछित । अब गंगा के अस्तित्व को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी अलकनंदा को निभानी है ।" यह एक समझदार ,गंभीर सास का तर्क था ।
स्वरचित रचनाएं..... भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना
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Thursday, September 23, 2010
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बहुत खूब।
ReplyDeletekya gahri aur sakaratmak soch hai...bahut khoob...
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