Pages

Saturday, July 30, 2011

गज़ल(चमकते हुए तारों को...)

चमकते हुए तारों को आँखों में पनाह दे,
ना किस्मत से इनको जोड और एतराज दे ।


दिल पर उग आये अनचाहे मकडी के जाले,
पोंछ कर इनको हर रिश्ते को नई निगाह दे । 


कभी जमीं तो कभी आसमाँ को तरसते लोग,
होगा चाँद मुट्ठी में जडों पे ऐतबार दे । 


मुमकिन है राम सा भाई मिले कृष्ण सा सखा,
अपनी आस्था विश्वास को फिर से निखार दे ।


इतिहास की भूलों से ये सीखेंगे भला क्या,
कहते हैं आगे की सुध ले पिछली बिसार दे ।


18 comments:

  1. दिल पर उग आये अनचाहे मकडी के जाले,
    पोंछ कर इनको हर रिश्ते को नई निगाह दे ।
    aameen...

    ReplyDelete
  2. सुन्दर गज़ल्।

    ReplyDelete
  3. इतिहास की भूलों से ये सीखेंगे भला क्या,
    कहते हैं आगे की सुध ले पिछली बिसार दे ।

    बहुत खूब ...

    ReplyDelete
  4. दिल पर उग आये अनचाहे मकडी के जाले,
    पोंछ कर इनको हर रिश्ते को नई निगाह दे । ....सुन्दर गजल बधाई

    ReplyDelete
  5. वन्दना जी बहुत अच्छा लिखती हैं आप बधाई और शुभकामनायें |

    ReplyDelete
  6. वन्दना जी बहुत अच्छा लिखती हैं आप बधाई और शुभकामनायें |

    ReplyDelete
  7. pahli baar aapke blog par aai hoon.bahut achchi ghazal padhi.ek kavita lautna chahta hoon padhi dil ko choo gai.

    ReplyDelete
  8. bahut badiya rachna..
    bahut achha laga aapke blog par aana..
    Haardik shubhkamnayen!

    ReplyDelete
  9. बढ़िया ग़ज़ल...
    धन्यवाद
    http://www.aarambhan.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  11. वाह ...बहुत ही अच्‍छी रचना ..आभार ।

    ReplyDelete
  12. कल 10/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  13. दिल पर उग आये अनचाहे मकडी के जाले,
    पोंछ कर इनको हर रिश्ते को नई निगाह दे ।

    बहुत खूबसूरत गज़ल

    ReplyDelete
  14. 'मुमकिन है राम सा भाई मिले कृष्ण सा सखा,
    अपनी आस्था विश्वास को फिर से निखार दे ।'
    मैंने दिया अपने विश्वास को निखार और....इससे ज्यादा पा लिया.शब्दों को जी जाओ.....लिखना शब्दों का खेल नही.इन्हें जीना सीखना....जीवन को खूबसूरत बनाना है.
    अच्छा लिखती हो.मुझे खुशी है कि राष्मिप्रभाजी के ब्लॉग के मार्फत में तुम तक तो पहुँच पाई ...वर्ना.. दुःख होता.

    ReplyDelete
  15. 'मुमकिन है राम सा भाई मिले कृष्ण सा सखा,
    अपनी आस्था विश्वास को फिर से निखार दे ।'
    मैंने दिया अपने विश्वास को निखार और....इससे ज्यादा पा लिया.शब्दों को जी जाओ.....लिखना शब्दों का खेल नही.इन्हें जीना सीखना....जीवन को खूबसूरत बनाना है.
    अच्छा लिखती हो.मुझे खुशी है कि राष्मिप्रभाजी के ब्लॉग के मार्फत में तुम तक तो पहुँच पाई ...वर्ना.. दुःख होता.

    ReplyDelete

आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर