तुम जो चलो तो
मैं भी चल ही दूँगी
हवा मंथर मंद सी
पुष्प संग सुगंध सी
कहीं यह पढ़ा था
दिल ने भी कहा था
एकला चलो रे
आकाश को बढ़ो रे
छू लिया गगन को
पा लिया सपन को
शून्य सा लगा था
मोती बिन बिंधा था
जब तलक चमक थी
हँसी थी खनक थी
सोचते रहे हम
परछाइयां रहेगी
पर धूप जब ढली तो
तन्हाईयाँ बची थी
अकेले गर चलो तो
भाव संग रहे यह
अकेले चल पड़े हो
अकेले पर रहो न
शून्य से बढे हम
एक से जो दश हों
शत हों सहस्त्र हों
न छलना छल सकेगी
न प्रवंचना रहेगी
नेक जब चलन हों
कांटे या चमन हों
पग ये बढ़ चलेंगे
अकेले हम चले हैं
मगर अकेले ना रहेंगे
एकला चलो रे
ReplyDelete..लोग खुद ही साथ हो लेंगे....सुन्दर भाव...
खूबसूरती सजाये हैं भाव ..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteन छलना छल सकेगी
ReplyDeleteन प्रवंचना रहेगी
नेक जब चलन हों
कांटे या चमन हों
पग ये बढ़ चलेंगे
एकले चले तो हैं
मगर
ना एकले रहेंगे
aapki abhivyakti thandhi malaya si koyi sandesh padhati lag rahi hai ,jo sahajata se hridaya men samhit ho rahi hai ,..sargarbhit srijan .... shukriya ji /
sundar abhivaykti....
ReplyDeletebehad behad shandar
ReplyDeletealag bhav liye bahut sundar kavita
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteनेक जब चलन हों
ReplyDeleteकांटे या चमन हों
पग ये बढ़ चलेंगे
एकले चले तो हैं
मगर
ना एकले रहेंगे
बहुत खूब वंदना जी।
सादर
सुन्दर, भावपूर्ण, अनुपम प्रस्तुति.
ReplyDeleteनयी पुरानी हलचल से आपकी पोस्ट का लिंक मिला.
सच में आनंदित हो गया मन आपकी अभिव्यक्ति को
पढकर.
आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
अप्रतिम कविता वन्दना जी बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteअप्रतिम कविता वन्दना जी बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteSundar likha hai . achchhi lagi
ReplyDeleteइस दुर्योधन की सेना में सब शकुनी हैं ,एक भी सेना पति भीष्म पितामह नहीं हैं ,शूपर्ण -खा है ,मंद मति बालक है जिसे भावी प्रधान मंत्री बतलाया समझाया जा रहा है .एक भी कृपा -चारी नहीं हैं काले कोट वाले फरेबी हैं जिन्होनें संसद को अदालत में बदल दिया है ,तर्क और तकरार से सुलझाना चाहतें हैं ये मुद्दे .एक अरुणा राय आ गईं हैं शकुनियों के राज में ,ये "मम्मीजी" की अनुगामी हैं इसीलिए सरकारी और जन लोक पाल दोनों बिलों की खिल्ली उड़ा रहीं हैं.और हाँ इस मर्तबा पन्द्रह अगस्त से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है सोलह अगस्त अन्नाजी ने जेहाद का बिगुल फूंक दिया है ,मुसलमान हिन्दू सब मिलकर रोजा खोल रहें हैं अन्नाजी के दुआरे ,कैसा पर्व है अपने पन का राष्ट्री एकता का ,देखते ही बनता है ,बधाई कृष्णा ,जन्म दिवस मुबारक कृष्णा .....बहुत सार्थक सौदेश्य पोस्ट वंदना जी ,सकारात्मक ऊर्जा से संसिक्त ,ऐसा ही लिखती रहिये ...न छलना छल सकेगी
ReplyDeleteन प्रवंचना रहेगी
नेक जब चलन हों
कांटे या चमन हों
पग ये बढ़ चलेंगे
एकले चले तो हैं
मगर
ना एकले रहेंगे . सुन्दर भाव बोध की श्रेष्ठ रचना .... ram ram bhai
शनिवार, २० अगस्त २०११
कुर्सी के लिए किसी की भी बली ले सकती है सरकार ....
स्टेंडिंग कमेटी में चारा खोर लालू और संसद में पैसा बंटवाने के आरोपी गुब्बारे नुमा चेहरे वाले अमर सिंह को लाकर सरकार ने अपनी मनसा साफ़ कर दी है ,सरकार जन लोकपाल बिल नहीं लायेगी .छल बल से बन्दूक इन दो मूढ़ -धन्य लोगों के कंधे पर रखकर गोली चलायेगी .सेंकडों हज़ारों लोगों की बलि ले सकती है यह सरकार मन मोहनिया ,सोनियावी ,अपनी कुर्सी बचाने की खातिर ,अन्ना मारे जायेंगे सब ।
क्योंकि इन दिनों -
"राष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,महाराष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,
मनमोहन दिल हाथ पे रख्खो ,आपकी साँसे अन्नाजी .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Saturday, August 20, 2011
प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सही लिखा है वंदना आपने.आपके इन विचारों का मैं उतना ही सम्मान करती हूँ जितना..........खुद अपना.हा हा हा
ReplyDeleteऐसे ही रस्ते जीवन में चुने पाँव ...मन दोनों लहुलुहान हो गए.मन मेरे साथ रहा.उसने सुकून पाया इसलिए ज़ख्मों को भूल गया.
लहुलुहान पांवों ने अपने निशाँ छोड़ दिए थे उन रास्तों पर.....देखा कई चले आ रहे हैं ...जो डरते थे इन रास्तों की ओर देखने से ही क्योंकि.....मानव प्रवृति सरलता,सहजता ढूढने की जो रही है.
और....खुश हूँ.जीवन से संतुष्ट भी.नही...नही...गलत न समझना.एक सीधीसादी औरत हूँ.यह आत्मश्लाघा भी नही...जीवन के पृष्ठ है जिन्हें खोल कर पद्धति हूँ और.....आप जैसे बच्चों को बताती हूँ दरों नही ...चलो..अकेले ही काफिले बन जायेंगे...आज नही...हमारे जाने के बाद ही सही एक पगडण्डी तो मिल जायेगी लोगों को बनी हुई. जियो और लिखा है उसे जी जाओ. प्यार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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