हुआ सम्मान नारी का यहाँ नर नाम से पहले
सिया हैं राम से पहले व राधे श्याम से पहले
समेटा है मेरा अस्तित्व धारोंधार तुमने जब
विशदता मिल गयी जैसे कहीं विश्राम से पहले
खिंची रेखा कोई जब भी बँटे आँगन दुआरे तो
कसक उठती है सोचें हम जरा परिणाम से पहले
ग़ज़ल का जिक्र जब होगा कशिश की बात गर होगी
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले
बुझा मत आस का दीपक यकीनन भोर आएगी
अँधेरा है जरा गहरा मगर अनुकाम से पहले
अगर ममता ने बाँधी है परों से डोर कुछ पक्की
यकीनन लौट आयेंगे परिंदे शाम से पहले
विरासत में मिली खुशबू खिले हैं रंग बहुतेरे
छुआ आँचल कहो किसने कि जिक्र-ए-नाम से पहले
-वंदना
(तरही मिसरा - "तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले" जनाब क़तील शिफाई साहब की एक ग़ज़ल से )