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Sunday, September 22, 2013

दोहे



मणि तारक ले गोद में , सबमें बांटे आश
रहता थामे पोटली , वो बूढा आकाश

धरणी तो यह पल रही तेरे अंक विशाल
प्रलय राग तू  क्यूँ रचे सृजन हेतु दिक्पाल

मनों आकाश पितृ सम हरे धरा संताप
देख पीड़ा बरस गया खोकर धीरज आप

तृष्णा पीछे भागते सुने न मन का शोर
कैसे सोयी रात थी कैसे जागी  भोर

प्रकृति के सम्मान पर चोट करे सायास
कैसा तेरा रुदन था कैसा तेरा हास

सप्तरंग मिलकर करें  जीवन सुधा प्रकाश
ऐसे रंग न बांटिये जो नित करें हताश 

शिव है लय की साधना
शिव प्रलय का रूप
शिव कला की छांव हैं
शिव ही मंगल धूप

9 comments:

  1. सभी दोहे उत्कृष्ट हैं ।

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  2. उत्कृष्ट दोहे ,उम्दा लेखन !

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  3. बहुत सुन्दर दोहे प्रस्तुति !
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  4. बहुत खूब,सुंदर भावपूर्ण दोहे !

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  5. बहुत खूब,सुंदर भावपूर्ण दोहे !

    RECENT POST : हल निकलेगा

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  6. अहा! अति सुन्दर दोहे है और भाव तो उत्कृष्ट हैं ही..

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  7. प्राकृति ओर मन को बांधते सुन्दर दोहे ... सार्थक ...

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर