साथ तेरा मेरा
धूप बारिश सा
यूँ तो अलग है
अस्तित्व दोनों का
किन्तु संग मिल बिखराते
सप्त रंग इन्द्रधनुष के
चाँदनी उंडेलती घडों शीतलता
रवि स्थित प्रज्ञ बन देता है प्रेरणा
किन्तु तुमने भी सराहा
गगन पट सांध्य समय का
हमराह चलते दोराहे पर किसी
राहे जुदा हो सकती हैं हमारी
किन्तु रिश्ता है हमारा
लक्ष्य और शुभेच्छा सा
raaste juda hon , iraade nahin ...
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना ...
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteअन्यथा न लें तो एक सलाह : फांट थोड़ा छोटा ही रखें
कसक भरी संवेदना पास भी दूर भी ,सुंदर पलों का साक्ष्य देती अच्छी है , प्रीतिकर प्रयास सराहनीय है ....
ReplyDeleteवंदना जी ,
ReplyDeleteरिश्तों का महत्त्व बताती एक सार्थक रचना। प्रत्न करने पड़ते हैं रिशों को स्नेहिल और मिठास युक्त बनाये रखने के लिए। इसी में रिश्तों की सार्थकता है। खूबसूरत रचना के लिए बधाई।
very good post vandana
ReplyDeletemy blog link- "samrat bundelkhand"
परन्तु रिश्ता है हमारा लक्ष्य और शुभेच्छा सा ।सुन्दर भाव भूमि ."रिश्ता तो मेरा तुमसे केवल दो दिन का, पर सम्बन्ध पुराना है उतना, दूर बसे प्रीतम से जितना पाती का .
ReplyDeleteमेरा तुमसे सम्बन्ध पुराना है उतना दीपक से जितना बातीका .
क्षण भर को तुम गए दूर ,
लगता था जैसे गए भूल ,
जाने वाले जाते जैसे, छोड़ पंथ में अपने धूल .
रिश्ता तो मेरा तुमसे केवल दो दिन का पर सम्बन्ध पुराना है उतना ,
साहूकार से होता जितना थाती का .
दीपक से जितना बाती का .