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Thursday, June 23, 2011

असीम तुम

असीम तुम आकाश
पाखी बन मैं उडूं

विशाल तुम समंदर
अंक की सीप बनूँ

सलोना वह सपना
देखूं मैं नींद लूं

गंध इक मनभावन
सुवासित करे मानस

सुबह की मीठी धूप
हथेली में भर लूं

असीम तुम आकाश
पाखी बन मैं उडूं

12 comments:

  1. subah kee mithi dhoop ke ehsaas se bharee hatheliya achhi lagin

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  2. सुन्दर अहसासो से लबरेज़ कविता।

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  3. सुंदर सीधी सरल रचना. पढ़ कर अच्छा लगा.

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  4. अहा, क्या बात है.
    बढ़िया कविता.

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  5. very nice mere blog me aane ke liye sukriya kripya aate rahiye yaha se aaye

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  6. Saral shabdon ka saral sanyojan. Sundar kavita ke liye Badhaisundar

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  7. कोमल भाव की राग -अनुराग जगाती मुग्धा भाव की रचना .

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  8. अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं

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  9. .... भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर