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Thursday, May 6, 2010

मन बंजारे


मन बंजारे
अनगिन गांठे थी ताने में
अनगिन गांठे थी बाने में
सफ़ेद हुए स्याह बालों की
एक उमर बुनी अनजाने में
अनुभव कुछ थे नीम करेले
और कुछ थे शहद के धारे
कभी पिंजी रुई की नरमी
थी चुभन कभी अफ़साने में
जीवन के वचन निभाए भी
आंधी में दिए जलाये भी
डेरा अपना बंजारे सा
भटके दर दर वीराने में
साँस दर साँस उलटी गिनती
तेरे दामन से क्या चुनती
खोल रहस्य जिन्दगी अब तू
क्या लाईथी नजराने में
जब जब पीड़ा घन घिरता है
दिल में आग लिए फिरता है
एक कथा वही उमस घुटन की
युग बीत गए समझाने में
एक उमर बुनी अनजाने में

1 comment:

  1. मन बंजारे से दो कविताएँ पेश की गयी हैं ..और दोनों ही बहुत गहन बात को अभिव्यक्त कर रही हैं ...

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर