माँतुझसे मेरी कथा शुरू है
माँ ओ माँ तू प्रथम गुरु है
नित्य अंगारों पर चली तू
कपूर हथेली पर जलाये
रचने को नवछंद ऋचा का
पीड़ा से मन मौन सजाये
मंत्रपूरित कवच सा मुझ पर
सदा शुभचिंतक कल्पतरु है
मैं एक बीज था पल्लव का
मजबूत शाख विस्तार दिया
दे पंख मेरे अरमानों को
नव क्षितिज नवल संसार दिया
मैं शाख तेरे व्यक्तित्व की
तू ही जीवनाधार तरु है
सूखे में आशा बादल सा
आशीष भरा तेरा आँचल
हाँ बांध खुद को बन्धनों में
दी मुझको आजादी पलपल
तू ही स्नेह तू वर्तिका भी
बिना तेरे तो जीवन मरू है
माँ ओ माँ तू प्रथम गुरु है
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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर