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Wednesday, December 15, 2021

रसमयी किलकारियां

 पंछियों के गीत का तुम साथ देते साज हो

 खिलखिलाते मस्त झरनों की मधुर आवाज हो

दीप पूजा थाल के हो या सुवासित धूप हो

रंग बिखराते हँसी के सुरधनुष का रूप हो

ये पुलक ये मस्तियाँ  सब ख़ास इक अंदाज है

क्यों करें कल पर मनन जब खुशनुमा सब आज है

हो खिलौनों की कमी पर जो मिला वो खास है

राजसी हैं ठाठ अपने मुस्कुराती आस है

धूल से गर हैं सने हम गोद मिट्टी की मिली

शुद्ध भावों की नमी से हर कली फूली खिली

गूँजती हैं सुन फ़िजा में रसमयी किलकारियां

फूल हैं या बाग़ में ये खेलती हैं तितलियाँ

-    वंदना   

7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. उव्वाहहहहह
    बेहतरीन रचना
    सादर..

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  3. क्यों करें कल पर मनन जब खुशनुमा सब आज है
    हो खिलौनों की कमी पर जो मिला वो खास है
    राजसी हैं ठाठ अपने मुस्कुराती आस है
    बिल्कुल सही कहा आपने!
    बहुत उम्दा सृजन..

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  4. ये पुलक ये मस्तियाँ सब ख़ास इक अंदाज है

    क्यों करें कल पर मनन जब खुशनुमा सब आज है
    बहुत ही मनमोहक
    लाजवाब गीत
    वाह!!!

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  5. ऐसे राजसी ठाठ के धनी सभी नहीं होते
    बहुत सुन्‍दर

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर