खिलखिलाते मस्त झरनों की मधुर आवाज हो
दीप पूजा थाल के हो या सुवासित धूप हो
रंग बिखराते हँसी के सुरधनुष का रूप हो
ये पुलक ये मस्तियाँ सब ख़ास इक अंदाज है
क्यों करें कल पर मनन जब खुशनुमा सब आज है
हो खिलौनों की कमी पर जो मिला वो खास है
राजसी हैं ठाठ अपने मुस्कुराती आस है
धूल से गर हैं सने हम गोद मिट्टी की मिली
शुद्ध भावों की नमी से हर कली फूली खिली
गूँजती हैं सुन फ़िजा में रसमयी किलकारियां
फूल हैं या बाग़ में ये खेलती हैं तितलियाँ
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वंदना
अद्भुत किलकारियाँ
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteउव्वाहहहहह
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
सादर..
क्यों करें कल पर मनन जब खुशनुमा सब आज है
ReplyDeleteहो खिलौनों की कमी पर जो मिला वो खास है
राजसी हैं ठाठ अपने मुस्कुराती आस है
बिल्कुल सही कहा आपने!
बहुत उम्दा सृजन..
ये पुलक ये मस्तियाँ सब ख़ास इक अंदाज है
ReplyDeleteक्यों करें कल पर मनन जब खुशनुमा सब आज है
बहुत ही मनमोहक
लाजवाब गीत
वाह!!!
ऐसे राजसी ठाठ के धनी सभी नहीं होते
ReplyDeleteबहुत सुन्दर