अलसाई सी कुछ किरणें
अंगड़ाई ले रही होंगी
या फिर
घास पर फैली ओस
बादलों से मिलने की होड़ में
दम आजमा रहीं होंगी
वो तितलियाँ
जो धनक पहन कर सोई थीं
अपनी जुम्बिश से
आसमां में रंग भर रही होंगी
आखिर
तिलिस्म ही तो है
कोहरा
अपनी झोली में
न जाने
क्या कुछ छुपाये होगा
उस पार
शायद वसंत होगा
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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर