Pages

Monday, January 26, 2015

फासले भी हैं जरूरी

मीत बनकर ये खड़े हैं शीत पावस घाम
पंक्ति पौधों की सुहानी दृश्य मन अभिराम
धडधडाती रेल गुजरे गूँजता जब शोर
पटरियों की ताल पर हों वृक्ष नृत्य विभोर


पटरियां रहती समांतर क्षितिज की है खोज
सह रही घर्षण निरंतर धारती पर ओज 
दूरगामी पथ सदा वो जो धरे वैराग
फासले भी हैं जरूरी हो भले अनुराग


रूपमाला छंद 

Sunday, January 18, 2015

अच्छे दिन ……


नवकोंपलों के स्वागत में
देह भर उत्साह से उमगते
कण-कण को वासन्तिक बनाने में
हर पल विषपान कर
प्राणवायु उलीचते
कर्तव्य हवन में
स्वयं समिधा बन
जो पाया उसे लौटाते
पात-पात तिनका-तिनका
'इदं न मम' कहकर
आहुति देते  
देव ,ऋषि 
और पितृ ऋण से
मुक्त होना सिखलाते
ये वृक्ष पूछा करते हैं
कि ऋणानुबंधों की 
सुनहरी लिखावट की  
स्याही में डूबे
क्या कभी आया करते हैं
अच्छे दिन !


चित्र गूगल से साभार