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Monday, January 26, 2015

फासले भी हैं जरूरी

मीत बनकर ये खड़े हैं शीत पावस घाम
पंक्ति पौधों की सुहानी दृश्य मन अभिराम
धडधडाती रेल गुजरे गूँजता जब शोर
पटरियों की ताल पर हों वृक्ष नृत्य विभोर


पटरियां रहती समांतर क्षितिज की है खोज
सह रही घर्षण निरंतर धारती पर ओज 
दूरगामी पथ सदा वो जो धरे वैराग
फासले भी हैं जरूरी हो भले अनुराग


रूपमाला छंद 

8 comments:

  1. वाह .. कितनी सुन्दर बात और कितनी सच ... फांसला भी है जरूरी हो भले अनुराग ...
    बधाई गणतंत्र दिवस की ...

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  2. भाव और गेयता के साथ सुंदर शब्द संयोजन ..बधाई

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  3. फासले भी हैं जरूरी हो भले अनुराग

    सत्य भी है और सुंदर, आपकी रचना।

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  4. मंत्र मुग्ध हुआ मन उस फासले को अनुभव कर..

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  5. duriyan,najdikiyan banti hai...sundar ahsas

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  6. फासले भी जरूरी है। बहुत ही सुंदर रचना प्रस्‍तुत की है आपने।

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  7. यह तो ज्ञान की बात है.

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर