मीत बनकर ये खड़े हैं शीत पावस घाम
पंक्ति पौधों की सुहानी दृश्य मन अभिराम
धडधडाती रेल गुजरे गूँजता जब शोर
पटरियों की ताल पर हों वृक्ष नृत्य विभोर
पटरियां रहती समांतर क्षितिज की है खोज
सह रही घर्षण निरंतर धारती पर ओज
दूरगामी पथ सदा वो जो धरे वैराग
फासले भी हैं जरूरी हो भले अनुराग
रूपमाला छंद
वाह .. कितनी सुन्दर बात और कितनी सच ... फांसला भी है जरूरी हो भले अनुराग ...
ReplyDeleteबधाई गणतंत्र दिवस की ...
भाव और गेयता के साथ सुंदर शब्द संयोजन ..बधाई
ReplyDeleteफासले भी हैं जरूरी हो भले अनुराग
ReplyDeleteसत्य भी है और सुंदर, आपकी रचना।
मंत्र मुग्ध हुआ मन उस फासले को अनुभव कर..
ReplyDeleteduriyan,najdikiyan banti hai...sundar ahsas
ReplyDeleteफासले भी जरूरी है। बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत की है आपने।
ReplyDeleteयह तो ज्ञान की बात है.
ReplyDeleteसुंदर शब्द संयोजन
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