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Saturday, November 30, 2013

ग़ज़ल

कोई एक फूल मिसाल का भले ज़िन्दगी को दिया न हो
मेरी हरक़दम रही कोशिशें मुझे रहगुज़र से गिला न हो
                    
तेरी आस में यही सोचती मैं तमाम उम्र जली बुझी
कहीं अक्स तेरी निगाह में मेरी फ़िक्र से ही जुदा न हो

नयी सरगमों नए साज़ पर है धनक धनक जो नफ़ीस पल
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो

है उरूज़ बस मेरी आरज़ू मेरी गलतियों को सँवार तू           
मेरी साँस यूँ भी कफ़स में है नया दर्द अब ऐ खुदा न हो 
          
जरा देख आँखों की बेबसी वो जो थे जवां ढले बेखबर
अरे उम्र के किसी दौर में उसी दर पे तू भी खड़ा न हो

न बगावतें न रफाक़तें ये सियासतों की हैं चौसरें               
तो झुका लिया यूँ शज़र ने सिर कहीं आँधियों को गिला न हो

ढले शाम जब भी हो आरती दिपे तुलसी छाँव में इक दिया
करें तबसरा भी मकीनों में कोई फ़ासला तो बढ़ा न हो                                                       

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“इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो”  तरही मिसरा इस दौर के अजीमतरीन शायर जनाब बशीर बद्र साहब की एक ग़ज़ल से लिया गया है.


(रहगुज़र = रास्ते जिनसे हम गुजरते हैं ; उरूज़=उत्थान; कफ़स= क़ैद; रफाक़तें= साहचर्य /दोस्ती ; तबसरा=प्रेक्षण /ध्यानपूर्वक देखना; मकीन =घर में रहने वाले  )

8 comments:

  1. ढले शाम जब भी हो आरती दिपे तुलसी छाँव में इक दिया
    करें तबसरा भी मकीनों में कोई फ़ासला तो बढ़ा न हो

    Kya Baat...Khoob Likha Hai...

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  2. वाह बहुत सुंदर गजल....!
    ==================
    नई पोस्ट-: चुनाव आया...

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  3. वाह! वह! अजी वाह!कितनी दफा कहूं कि दिल को सुकून मिले..वाह!

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  4. पूरी की पूरी ग़ज़ल एहसासों का समंदर है. बेजोड़ सृजन.

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  5. डाक्टर बशीर बद्र साहब की सबसे पसंदीदा बहर पे लाजवाब शेर कहे हैं ...

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  6. उत्कृष्ट प्रस्तुति.सुन्दर रचना

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  7. वाह-वाह बहुत सुंदर गजल
    उत्कृष्ट प्रस्तुति ....

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  8. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ....!!

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर