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Sunday, December 16, 2012

समाज कंटक


ओ रे काँटे
मैनें तो अब तक
यही जाना था
रखता है धार
तू स्वजनों के रक्षार्थ
पालता है स्वप्न
कोमल फूलों के हितार्थ
चीर देता है अरमान
उन हाथों के
जो करते हैं छेड़छाड़
तेरे उद्भव तेरे आधार के साथ
किन्तु देखती हूँ अब
कि तू लहू का दीवाना है
खेलता है खूनी खेल
तोड़ कर दिलों के मेल
हँसता मुस्कुराता है
तौलता है अपनी तुला पर
औरों का स्वाभिमान
सरक जाता है
रिश्तों के बीच गहरे
देता है जख्म 
जो सिर्फ सावन भादों नहीं
रहते हर मास हरे
इन जख्मों के सूखने से पहले
पैना लेता है नाखून
मौका मिलते ही
फिर खरोंच देने के लिए 

20 comments:

  1. इन जख्मों के सूखने से पहले
    पैना लेता है नाखून
    मौका मिलते ही
    फिर खरोंच देने के लिए,,,,

    बहुत उम्दा ,,, बधाई।

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

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  2. इन जख्मों के सूखने से पहले
    पैना लेता है नाखून
    मौका मिलते ही
    फिर खरोंच देने के लिए,,,,bhaut hi behtreen abhivaykti.....

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  3. सब कुछ बदल रहा है ... शायद काँटों का स्वभाव भी ...

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  4. अभी गुल कुचले जा रहे हैं और कल खार की बारी आनी है. जीत तो प्रीत की ही होनी है.

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  5. बहुत उम्दा , तम हरने को एक दीप
    तुम मेरे घर भी लाना
    मृदुल ज्योति मंजु मनोहर
    उर धीरे से धर जाना

    सिद्ध समस्या हो जाये
    साँस तपस्या बन जाए
    ऐसे जीवन जुगनू को
    सुन साधक तप दे जाना

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  6. झाड़ दें माथे से... वो सारे बल, सारे तेवर...
    जिनमें उलझ-उलझ गिरे हम... न जाने कितनी बार..!
    संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
    और संवारें आने वाला कल.....
    कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
    एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!

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  7. रहते हर मास हरे
    इन जख्मों के सूखने से पहले
    पैना लेता है नाखून
    मौका मिलते ही
    फिर खरोंच देने के लिए

    सुदृढ़ सोच .....और बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
    शुभकामनायें वंदना जी ........

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  8. इन जख्मों के सूखने से पहले
    पैना लेता है नाखून
    मौका मिलते ही
    फिर खरोंच देने के लिए,,,, सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति..

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  9. हो सकता है वो अपना धर्म निभाता हो ... चुभना तो उसकी नियति ही है ...
    भावमय रचना ...

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  10. बिलकुल अलग भावभूमि और अनछुए कन्टेन्ट के साथ अच्छी कविता |

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  11. ये समाज कंटक ही हैं जिसके चलते दिल्ली जैसे मामले सामने आते हैं।।।

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  12. बहुत मर्मस्पर्शी रचना...

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  13. बडी खिन्नता होती है इन कंटकों से ..

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  14. ye sab badlte hue waqt ka parinaam nahi dushparinam hai...bahtu hee ghatak hogi wo sthiti jab rakshak hee bhakshak ho jaayene

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  15. waqt kee hawa ka prbhav sabhi pe pada hai..par ye prabhav ka parinaam nahi duspharinaam hai

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  16. इन काँटों पे भरोसा करना ... क्या कहूँ .. काश काँटों को पता होता कि ज़ख्म, दर्द चुभन क्या होती है।
    अच्छी, गहन अभिव्यक्ति
    सादर
    मधुरेश

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  17. इन ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने वाले भी ताक में लगे रहते हैं।

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर