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Sunday, February 12, 2012

यह भी है जिंदगी



महँगे इत्रों से महकती
लंबी चौड़ी गाड़ियों में
फर्राटे से दौड़ती
कभी गहनों के गुणगान
कभी प्रोपर्टी के गीत
परसों पेरिस से लौटी हूँ
पति अमेरिका में हैं
बेटा लन्दन में सैटल है
बिटिया ऑस्ट्रेलिया में
निऑन बल्बों सी दमकती
सच्चे मीत को तरसती
भरपेट खाकर भी
भूख की कथा सी
ये भी है जिंदगी
शाम ढले
मेहनत के बाद
चूल्हे के चारों ओर
चार प्राणी
समय की चाल
उम्र से पहले
पक गए हैं बाल
 सिर्फ दो रोटी ...
आधी आधी बाँट लेंगे
चादर छोटी है तो क्या
आधा तन ढांप लेंगे
प्यार की भीनी महक सी 
चाँदनी मद्धिम चाँद की
स्वयं में परितृप्त सी
हाँ यह भी है जिंदगी ....

13 comments:

  1. वाह! बहुत ही अच्छी रचना.

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  2. तृप्त संतुष्ट ज़िन्दगी जीने को इतना कुछ नहीं चाहिए ..... सच है ..

    उम्दा रचना

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  3. प्यार से संतृप्त जिन्दगी से बढ़कर कुछ नहीं...बहुत ही सुंदर कविता|

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  4. बेहतरीन सृजन को मान, रचनाकार को ह्रदय से सम्मान ,सजीवता को परिभाषित करती मुखर अभिव्यक्ति ...
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  5. ... प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  6. sach mil baat kar rehna hi jindgi hai

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  7. शायद यही है जिंदगी

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  8. हर किसी को हर चीज़ नहीं मिलता.. प्यार तो तकदीर वाले को ही मिलता है..बाकी प्यार के ख़याल से खुश हो लेते है..

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  9. इसी का नाम जिन्दगी है....बहुत सुन्दर...

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  10. THIS IS THE WAVE OF LIFE.
    BEAUTIFUL LINES

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  11. भरपेट खा कर भी
    भूख की कथा सी...
    ये भी है जिंदगी...

    बेहद भावपूर्ण रचना वंदना जी...
    बधाई.

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  12. बहुत ही सुन्दरता से ज़िन्दगी की कड़वाहट और मिठास को गूंथा है ...एक सशक्त रचना

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  13. ह्रदय को छू गयी यह रचना. आपने उस सच्चाई को लिखा है जिसको सब नहीं देख पाते हैं. दुनिया भागती है जिस ज़िन्दगी के पीछे उसके अंदर का खोखलापन सब को दिख नहीं पाता. बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए.

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर