अनगिन गाँठे थी ताने में
अनगिन गाँठे थी बाने में
सफ़ेद हुए स्याह बालों की
यूँ उमर बुनी अनजाने में
अनुभव कुछ थे नीम करेले
और शहद के कुछ थे धारे
कभी पिंजी रुई की नरमी
थी चुभन कभी अफ़साने में
जीवन के वचन निभाए भी
आंधी मे दिए जलाए भी
डेरा अपना बंजारे सा
भटके दर दर वीराने में
सांस सांस गिन उलटी गिनती
तेरे दामन से क्या चुनती
खोल रहस्य जिंदगी अब तू
लाई थी क्या नजराने मे
जब जब पीड़ा घन घिरता है
दिल मे आग लिये फिरता है
एक कहानी उमस घुटन की
युग बीत गए समझाने मे