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Saturday, December 24, 2011

रिश्तों का मेला



देखा रिश्तों का मेला
जहाँ थे
अलग अलग कीमत के लोग
सबसे अधिक थी कीमत उनकी
जिनकी ऊपरी फुनगी का
नहीं मिलता छोर
फैले हैं ऐसे
कि मूल जड़ भी लापता है
लेकिन शाखाएँ
टिका देते हैं
 कहीं से भी
निकाल जड़ों को
जब जहाँ चाहिए होता है अवलंब


मध्यम कीमत के थे
वे लोग
जिनके मूल तना
 और पत्तियां
 सब स्पष्ट होते है
 इनके
सहजीवी होने का भाव
उत्सवों की शोभा बनता है

और 
सबसे कम होती है 
 कीमत उनकी
जिनकी न जड़ होती है
न पत्तियाँ
ये परजीवी होते हैं
और
परमुखापेक्षी हो कर
बिताते हैं जीवन

आक्रांत रहते हैं
बड़े वृक्ष इनसे
इसीलिये
इनकी कीमत
मिलती है केवल तभी
जब भीड़ की सेवा में
भीड़ की जरूरत होती है 


picture source : google image 

14 comments:

  1. वाह .. हर किसी की अपनी अपनी कीमत होती है ... अच्छा लिखा है बहुत ..

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  2. इसीलिये
    इनकी कीमत
    मिलती है केवल तभी
    जब भीड़ की सेवा में
    भीड़ की जरूरत होती है
    waah

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  3. bahut hee acche chitron ke madhyam se apni shandar baat kahi..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  4. हर -एक की कीमत को अच्छी तरह समझाया है आपने ...

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  5. हर तरह के रिश्तों की किमात का सही विश्लेषण किया है ..अच्छी रचना

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  6. बहुत सुन्दर बिम्बों के साथ एक शानदार पोस्ट|

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  7. कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  8. अलग हट के स्टाइल वाली कविता

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  9. इस रचना के माध्यम से आप ने जो कहना चाह वो दिल तक पहुच गया .....बेहतरीन रचना है ये पंक्तियाँ विशेष पसंद आई.... सबसे कम होती है
    कीमत उनकी
    जिनकी न जड़ होती है
    न पत्तियाँ
    ये परजीवी होते हैं
    और
    परमुखापेक्षी हो कर
    बिताते हैं जीवन

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  10. फुनगी और जड़ की अच्छी कीमत बताया है आपने इस कीमती रचना में . हाँ ! आज कीमत की बोली भी लगाई जाती है . हर क्षण मंगलमय हो..

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  11. very nice poetry !
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  12. बहुत सुंदर,
    नया साल सुखद एवं मंगलमय हो,..
    आपके जीवन को प्रेम एवं विश्वास से महकाता रहे,

    मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--

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  13. bahut sundar rachna hai tatha bahut kuchh kehti hai,badhai.

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  14. बहुत बहुत बहुत सुन्दर और गहरी पंक्तियाँ...पता नहीं कैसे लिख लेती हो ऐसा ..

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर