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अस्मिता की खोज में
मेरे मन की
शुचिता को
मिली जब भी
तुम्हारी ओर से
अवमानना
निरंतर जलती रही
उपेक्षा और अविश्वास
के आँवाँ में
किन्तु अब
हो गयी हैं परिपक्व
मेरी पीडाएं
परिभूत होकर भी
इतनी परिपक्व
कि बन सकती हैं
आहुति
किसी आश्रय यज्ञ की
एक मजबूत ईंट सी
क्योंकि होती है
वेदना में
शक्ति सृजन की
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क्यूंकि होती है
ReplyDeleteवेदना में
शक्ति सर्जन की
बहुत अच्छी लगी आपकी यह अभिव्यक्ति,वंदना जी.वेदना में भी शक्ति का अहसास कराती हुई.
सकारात्मक चिंतन के लिए बधाई.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है,जी.
स्नेहिल सृजन , भावनाओं का सुंदर चित्रण प्रभावशाली है ......मुबारक हो /
ReplyDeleteसही कहा आपने,
ReplyDeleteवेदना ही तो सृजन का स्रोत है।
सुंदर कविता।
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteभावनावो की सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteक्यूंकि होती है
ReplyDeleteवेदना में
शक्ति सर्जन की
सुन्दर भाव .. अनुभूति
... अब हो गयी परिपक्व मेरी पीडाएं....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर...
Bahut sundar...
ReplyDeletehttp://www.poeticprakash.com/
बहुत अच्छी सोच ...
ReplyDeleteक्योंकि होती है वेदना में शक्ति सृजन की.............बहुत सुन्दर.....शानदार पंक्तियाँ|
ReplyDeleteसृजन की शक्ति को खूब पहचाना है और सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है!
ReplyDeleteएक सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमेरी बधाई स्वीकार करे!
मेरी नई पोस्ट के लिये पधारे
जीवन पुष्प
www.mknilu.blogspot.com
निस्संदेह वेदना में सृजन की शक्ति है
ReplyDeleteमगर सृजन की एक अपनी वेदना है
सुंदर कविता
सुंदर कविता.
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
ReplyDeleteस्त्रियों को आधी दुनिया कहा जाता रहा है ,लेकिन उनमें भावनाओं की हरेक मोड़ पर सर्वाधिक संभावनाएँ हैं .......!
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