धैर्य का प्रतीक
सहती रहो
सूर्य की तपिश
एक संघर्ष
एक चुनौती
कोण बदलकर
स्वीकार तुम करती रहो
हो सकेगा तभी
अंकुरित पल्लवित जीवन
व्यर्थ तो नहीं
तुम्हारे द्वारा सूर्य की परिक्रमा
निरंतर अपनी धुरी पर
बनके तकली घूमना
जिजीविषा हो तुम
जीती रहो
नवीन सूत के तार से
जिंदगी बुनती रहो !
बहुत सुन्दर चित्रण्।
ReplyDeletebehad prabhawshali
ReplyDeleteतभी तो नारी को भी धरती की संज्ञा दी जाती है ..वो भी अपनी धुरी पर घूमती रहती ही सब सहते हुए ... बहुत अच्छी रचना
ReplyDelete...शानदार प्रस्तुति
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