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Monday, February 14, 2011

बिटिया

बिटिया चन्दन गंध तू शीतल मंद बयार
हो नयन अनुबंध ज्यूँ पावन गंगा धार!

ये गौरैया भी चले बिटिया की सी चाल
देखे डाली फूल की देती झूला डाल!

पंख लगा के उड़ चली तू अपनी ससुराल
बिटिया मेला फिर सजा आ गलबहियां डाल!

बचपन अपना फिर जियूं देखूं तेरे खेल
पग पग बिटिया साथ मैं रख सपनों से मेल !

बेटी काँधे पे बिठा दे बाबुल विस्तार
उड़ना तू आकाश में अपने पंख पसार !

3 comments:

  1. बहुत प्यारी रचना ...बेटियाँ ऐसी ही सुगन्धित होती हैं ..

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  2. आभार संगीता जी
    बहुत दिनों बाद आपसे टिप्पणी पाकर अच्छा लगा
    बहुत बहुत धन्यवाद !

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर