सुख दुख सिक्के के दो पहलू
ज्यों सुविधा दुविधा जीवन में
कभी अमावस रात घनेरी
लगे कभी पूनम पग फेरी
घटते बढते चंदा पाहुन
ले उतरे डोली ऑंगन मे
सपनों के बुझते अलाव हों
थके हुए सारे चिराग हों
अंधकार हरने को लाए
हम जुगनू अपने ऑंचल में
नीरव में गूँजे गान कहीं
मुखरित होते हैं मौन वहीं
जब निज को ही पहचान लिया
कोयल कूके मन उपवन में
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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर