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Wednesday, February 2, 2011

सुख दुःख


सुख दुख सिक्के के दो पहलू
ज्यों सुविधा दुविधा जीवन में
कभी अमावस रात घनेरी
लगे कभी पूनम पग फेरी
घटते बढते चंदा पाहुन
ले उतरे डोली ऑंगन मे
सपनों के बुझते अलाव हों
थके हुए सारे चिराग हों
अंधकार हरने को लाए
हम जुगनू अपने ऑंचल में
नीरव में गूँजे गान कहीं
मुखरित होते हैं मौन वहीं
जब निज को ही पहचान लिया
कोयल कूके मन उपवन में

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर