खिलखिलाते मस्त झरनों की मधुर आवाज हो
दीप पूजा थाल के हो या सुवासित धूप हो
रंग बिखराते हँसी के सुरधनुष का रूप हो
ये पुलक ये मस्तियाँ सब ख़ास इक अंदाज है
क्यों करें कल पर मनन जब खुशनुमा सब आज है
हो खिलौनों की कमी पर जो मिला वो खास है
राजसी हैं ठाठ अपने मुस्कुराती आस है
धूल से गर हैं सने हम गोद मिट्टी की मिली
शुद्ध भावों की नमी से हर कली फूली खिली
गूँजती हैं सुन फ़िजा में रसमयी किलकारियां
फूल हैं या बाग़ में ये खेलती हैं तितलियाँ
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वंदना