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Friday, July 27, 2018

ग़ज़ल-

ग़ज़ल-
हौसलों को परखना बुरा तो नहीं
टिमटिमाता दिया मैं बुझा तो नहीं
बादलों में छुपा चंद्रमा तो नहीं
या कुहासे घिरी इक दुआ तो नहीं
वक़्त की माँग तो है मगर हमसफ़र
रह बदलना मेरी पर रज़ा तो नहीं
जीत है, जश्न है, फ़ख्र का शोर है
बेटियाँ अनसुनी-सी सदा तो नहीं
फेर भी लेती आँखें मगर क्या करूँ
है बदलने की मुझमें कला तो नहीं
मोड़ हैं अनगिनत और कंकर भी हैं
रहगुज़र ये मेरी तयशुदा तो नहीं
हाँ, अज़ानों में है, मौन वंदन में है
दूर हमसे वो नूर-ए-ख़ुदा तो नहीं

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर