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Saturday, May 28, 2016

“फूल जंगल में खिले किन के लिए”


नव सुहागिन या वियोगिन के लिए
तारे टाँके रात ने किन के लिए

नीतियों के संग होंगी रीतियाँ
मैं चली हूँ आस के तिनके लिए

बात आसां थी समझ आई मगर
हम अड़े हैं किन्तु-लेकिन के लिए

माँ दुआएँ बाँधती ताबीज में
कीलती है काल निसदिन के लिए

साधनारत हैं स्वयं ये और क्या
“फूल जंगल में खिले किन के लिए”

बाग़ चौपालों बिना बैठें कहाँ
हो कहाँ संवाद पलछिन के लिए  

विष पियाला या पिटारी साँप की
क्या परीक्षा शेष भक्तिन के लिए


-मिसरा-ए-तरह आदरणीय शायर जनाब अमीर मीनाई साहब का 
बह्र: रमल मुसद्दस् महजूफ  

1 comment:

आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर