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Friday, October 11, 2013

परंपरा और परिवार

स्वस्थ परम्पराएं
तराशती हैं
परिवार
ठीक वैसे  ही
जैसे बेतरतीब
किसी जंगल को
सांचे में ढालकर
दे दिया जाता है
रूप सुन्दर बगीचे का
परम्पराएं
होती हैं पोषित
देश और काल के
अनुशासन में
निरंतर
समष्टि के चिन्तन से
बांधती हैं
मर्यादित किनारे स्वच्छंद नद नालों के
और
बचा ले जाती है
क्षीण होने से
किसी धारा को
तभी तो
शिव कही जाती हैं
परम्पराएं  !!!

14 comments:

  1. अक्षरशः सत्य. हर युग में उन अनुशासन निर्माण करने वालों पर बहुत निर्भर करता है कि क्या दिशा दे के जाते हैं. नहीं तो अफगानिस्तान में पालन किये जाने वाले कुछ अमानवीय नियमों के तरह की विकृतियाँ आ जाती हैं समाज में.

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  2. सधे शब्दों में प्रस्तुत सुंदर विचार

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  3. बहुत ही सुंदर लेखन |

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  4. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-10-2013) के चर्चामंच - 1397 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  5. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...!
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!

    RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

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  6. बहुत सुन्दर। हर परिवार एक परम्परा से पोषित है उसी का आगे संवर्धन करता चलता है। परम्परा ही पहचान है। आई डी है।

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  7. सच कहा आपने

    आपको सपरिवार विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ।

    सादर

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  8. सर्वप्रथम तो आपको दशहरे की हार्दिक शुभकामनायें ..एक सुंदर सन्देश को समाहित किये शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई

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  9. बहुत सुन्दर .
    नई पोस्ट : रावण जलता नहीं
    नई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
    विजयादशमी की शुभकामनाएँ .

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  10. अप्रतिम..माँ के विशेष कृपा सदा बनी रहे..

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  11. परम्पराओं में पहचान छुपी होती है ... समाज की इन्सान की ... जरूरी है इन्हें जीवित रखना ...

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  12. परम्पराएं अतीत के आर्इने हैं, वर्तमान के पाथेय हैं और भविष्य के निर्देशक हैं।

    प्रभावी रचना।

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर