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Monday, March 5, 2012

बोलो तुम क्या बाँटोगे






खुशियाँ या फिर गम के मौसम
या स्नेहसिक्त महके सावन
पूछ रहा है फागुन हमसे
बोलो तुम क्या बाँटोगे

साबुन के बुलबुले उड़ाते
नन्हें बच्चों की बातें भोली
छूट गए गुब्बारे जिनसे
उन हाथों की गहन उदासी
पूछ रहा है बचपन हमसे
कैसे चित्र सजाओगे

भरी कचहरी भटके रिश्ते
जेठ दुपहरी शूल सी धूप
स्नेहिल संबंधों में छलके
जैसे बरगद छाँव का रूप
पूछ रहा है आँगन हमसे
किसको तुम अपनाओगे

बँटवारे की डाह जगाती
संदेह भरी कोई उधडन
साँझे चूल्हे सौंधी रोटी
घर कुनबा सिलती सीवन
पूछ रहा है दर्पण हमसे
कैसे महल  बनाओगे 

11 comments:

  1. बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
    वंदना जी,... होली की बहुत२ बधाई

    NEW POST...फिर से आई होली...
    NEW POST फुहार...डिस्को रंग...

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  2. बहुत ही बढ़िया ।

    होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    सादर

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  3. बहुत सारे सवालों के जवाब माँगती रचना...
    होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  4. विचारणीय प्रश्न हैं...... बहुत उम्दा

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  5. सरल मानस की सरस अभिव्यक्ति !
    सारे रंग लुटाये होली मन प्रसन्न कर जाये !

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  6. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    --
    रंगों के पर्व होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!!
    नमस्कार!

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  7. कोई सोचने को तैयार ही नहीं है कि जो बांटने के लिए हमें मिला है उसे छिपा कर इतना कुछ बाटने में लग जाते हैं कि खुद को ही बाँट लेते हैं..वंदना जी ,बहुत सुन्दर लिखा है आपने..आपको होली की शुभकामनाएं..

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  8. सटीक और सामयिक अभिव्यक्ति.
    होली की हार्दिक बधाई.

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  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति,अच्छी रचना,..
    होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...

    RECENT POST...काव्यान्जलि
    ...रंग रंगीली होली आई,

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  10. एक उत्तम रचना पढ़ने का अवसर दिया आपने।
    आभार !

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर