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Tuesday, October 4, 2011

महक उठी मेहंदी


आशा आई खिडकी के रस्ते

या सूरज की परछाई

महक उठी मेहंदी हाथों में

जब याद तुम्हारी आई

सदियों से गुम-सुम बैठी थी

आहट ये किसकी आई

परस गयीं तेरी सासे

या छेड़ गयी पुरवाई

पुलक उठा मन भीगे पत्तों सा

गालों पर अरुणाई

तुम गीत प्रीत का बनकर आये

या गूँज उठी शहनाई



14 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत कविता।
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    कल 06/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बहुत खूबसूरत

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  3. वाह ...बहुत ही खुबसूरत रचना

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  4. अच्छी लगी.शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.

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  5. आशा आई खिडकी के रस्ते
    या सूरज की परछाई....
    वाह! बड़ा सुन्दर बन पडा है गीत..

    विजयादशमी की सादर बधाईयाँ...

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  6. कोमल भावों को बुनती हुई रचना!
    विजयादशमी की शुभकामनाएं!

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  7. विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

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  8. मेंहदी है रचने वाली,
    नारनौल की मेंहदी प्रसिद्ध है रचने के लिए
    विजयादशमी की बधाई

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  9. बहुत सुंदर ...शुभकामनायें

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  10. बहुत ही खूबसूरत कविता। .....शुभकामनायें

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर