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Sunday, June 20, 2010

कान्हा तुम कान्हा ही होते


मात यशोदा पिता नन्द से
यदि तुमने पाए न होते
गिरधर वंशीधर नट नागर
बोलो तुम क्या कान्हा होते
विश्व प्रेम की धारा राधा
यमुना रूप बही न होती
पीपल छैयां मनहर गैया
ब्रजराज वो पावन न होती
प्रेम पूरित पवन न होती
बंशी तब क्या मधुर ही होती
कैसे मधुरिम गान सुनाते!

माँ की ममता होती बाधक
राधिका पथ रोक ही लेती
छेद न होते बाँसुरिया तन
कैसे मर्म भेद बतलाती
रहती उद्धव झोली खाली
नयन नीर सिंचित कालिंदी
व्याकुल गोपी गोप न होते!

स्वप्न समर्पित मीरा भक्ति
सूर के माखन चोर न होते
मोहाच्छादित अर्जुन शक्ति
तेरे माया रूप न होते
कुरुक्षेत्र और चक्र व्यूह बिन
गीता के संधान न होते
विश्व वन्द्य कैसे बन पाते!

आशा नेह और दृढ विश्वास
इन तत्वों की जुड़े पंखुरिया
अर्पित प्रत्यर्पित शुद्ध भाव
खिले कमल मोहक सांवरिया
सखा पुत्र और भक्त भाव हित
तुम अपनी बाहें फैलाये
हाँ असीम विस्तार ही होते

कान्हा तुम कान्हा ही होते
कान्हा तुम कान्हा ही होते !

7 comments:

  1. गिरधर वंशीधर नट नागर
    बोलो तुम क्या कान्हा होते
    विश्व प्रेम की धारा राधा
    यमुना रूप न होती
    पीपल छैयां मनहर गैया
    ब्रजराज वो पावन न होती

    वक्‍तुं न शक्‍यमस्ति तावत भावानाम् सरलतया अभिव्‍यक्ति: अस्ति ।

    साधुवाद: अस्‍य उत्‍कृष्‍ट काव्‍यस्‍य कृते ।।


    http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/

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  2. सराहनीय पोस्ट
    सही समय पर सही पोस्ट

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  3. बहुत सुन्दर रचना....सराहनीय


    कृपया कमेन्ट से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें...टिप्पणी करने में सरलता होगी

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  4. अच्छी कविता.
    इस कविता से यह भी सीख मिलती है कि हम जो होते हैं उसके पीछे हमारे आस-पास की प्रकृति का भी बहुत बड़ा हाथ होता है. हमें हमेशा सभी का शुक्रगुजार होना चाहिए.

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  5. बहुत ही सुन्दर भावों से परिपूर्ण रचना।

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  6. कृष्ण- कन्हैया पर इतनी भावपूर्ण रचना रची है आपने के शब्द हीन हो गया हूँ...वाह...बेमिसाल...
    नीरज

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर