Pages

Saturday, June 25, 2016

जब भी जुनून ले के कोई जिद से डट गया
ये देखो आसमान तो सपनों से अट गया

आकर करीब देखा तो जलवा सिमट गया
"कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया"

बेख़ौफ़ बढ़ रहा था कि पिघली थी रोशनी
पर धूप जब चढ़ी तो लो साया भी घट गया

ऊंची दुकां  में बिकती हैं फर्जी ये डिग्रियां
शिक्षा का हाल देख  कलेजा ही फट गया

रेखा मेरे करीब से लम्बी गुजर गयी
था कुछ वजूद छोटा तो कुछ और घट गया

हाँ बर्फ सी जमी तो मेरे चारों ओर है
पर क्या  हुआ कि रिश्ता नमी से ही कट गया

वो  ढूँढना तो चाहता था चैन की ख़ुराक
लेकिन दिलो-दिमाग की उलझन में बट गया  



  तरही मिसरा "कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया"
आदरणीय शायर जनाब कतील शिफ़ाई की ग़ज़ल से 


मफऊलु फाइलातु मुफाईलु फाइलुन
221 2121 1221 212
(बह्र:  मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ )