Monday, January 27, 2014

ठोकरें खा के.....

रेत से हेत मेरा मैं तो सँभल जाऊँगी
तपते सहरा से भी बेख़ौफ़ निकल जाऊँगी 

ये भी होगा जो मिला धूप का बस इक टुकड़ा
शब-ए-ग़म तेरी सियाही को बदल जाऊँगी

खेतों की कच्ची मुँडेरों  पे कभी बारिश में
संग तितली के बहुत दूर निकल जाऊँगी

कब तलक दिल को मनाऊं ये दिलासा देकर
"ठोकरें खा के मुहब्बत में सँभल जाऊँगी"

पुरकशिश है तेरी कोशिश तो मगर बेजा ही
क्यूँ तेरे तयशुदा साँचे में मैं ढल जाऊँगी

गुनगुनाती ये हवा चाँदनी ओढ़े पत्ते
क्यूँ लगे है कि तेरी याद में जल जाऊँगी

प्यास को फिर मेरी तू देगा समन्दर जानूँ
दिल्लगी पर तेरी हँसकर मैं निकल जाऊँगी

जो खुलेआम कहा करते हैं जिद्दी मुझको
वो भी तो फेंकते दाने कि फिसल जाऊँगी

आग के दरिया भी गुजरे हैं मुझे छूकर पर
मैं नहीं मोम की गुडिया जो पिघल जाऊँगी 


*****

तरही मिसरा आदरणीय साहिर लुधियानवीं साहब की ग़ज़ल से 
2122 1122 1122 22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन  (बहरे रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ)

"ठोकरें खा के मुहब्बत में सँभल जाऊँगा "

Sunday, January 19, 2014

जहान को जहाँ या जहां - क्या लिखें

श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परं: संयतेन्द्रिय: । ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ||
                                                                                                 -श्रीमद्भगवत गीता


पिछले दिनों एक चर्चा में उठे प्रश्न को लेकर मंथन प्रारम्भ हुआ जिसके निष्कर्ष रूप में जो बातें सामने आईं उन्हें साझा करना जरूरी प्रतीत हुआ |
जहान शब्द के संक्षिप्त रूप  जहाँ और जहां के रूप में प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया में देखे गए हैं इनमें से प्रामाणिक रूप कौनसा है ? विविध पुस्तकों के अध्ययन और भाषा ,लिपि व लेखन के प्रति जागरूक वरिष्ठ व्यक्तियों से चर्चा करके पता लगा कि उर्दू भाषा के जहान,बयान नादान जैसे शब्दों में ‘न’ का लोप करके क्रमश: जहाँ, बयाँ और नादाँ इत्यादि रूप लिखे जाते हैं | यहाँ अनुनासिक अर्थात् चंद्रबिंदु (ँ) का प्रयोग किया गया है| वास्तव में यही रूप प्रामाणिक माना गया है क्योंकि देवनागरी लिपि में उच्चारण के अनुसार ही लिखा जाता है |तब फिर जहां, बयां, नादां इत्यादि रूप क्यों देखे जाते हैं तो उत्तर मिला कि कभी-कभी कुछ की-बोर्ड में सभी लिपि चिह्न उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में अनुनासिक ध्वनि (चंद्रबिंदु युक्त) के स्थान पर अनुस्वार (ं) का प्रयोग कर लिया जाता है जैसे चाँद को चांद तथा अँधेरा को अंधेरा भी लिखा देखा जाता है | कभी-कभी इसका कारण यह भी दिया जाता है कि अनुस्वार कम जगह घेरता है यद्यपि स्थान कम घेरने वाला तर्क केवल अनुस्वार ध्वनि (न्,म् आदि )के उपयोग के संबंध तक ही सीमित होने की सम्भावना है यथा सम्बन्ध के स्थान पर संबंध कम स्थान घेरता है |
मेरे सामने एक  प्रश्न और था कि जहाँ (स्थानवाची) और जहाँ (दुनिया ) में क्या अंतर है तो यह अंतर भी स्पष्ट हुआ कि लिपि रूप में ये दोनों शब्द एक ही हैं किन्तु जहाँ (दुनिया )शब्द मूल रूप से फारसी भाषा से आया है और यह जहान का लघु अथवा संक्षिप्त रूप है जिसका प्रयोग यौगिक पदों (यथा जहाँगीर ,शाहजहाँ , जहाँआरा आदि) में होता है, इसके अतिरिक्त पद्य में भी लय की आवश्यकतानुसार संक्षिप्त रूप का प्रयोग किया जाता है |
हिंदी भाषा में अन्य भाषा से आये शब्दों को यथासंभव उनके मूलस्वरूप में ही अपनाया गया है और भाषा विकास के क्रम में नए लिपि चिह्नों को भी अपनाया गया जैसे ऑफिस का ‘ऑ’ (अंग्रेजी) और उर्दू भाषा का नुक्ता (क़, ग़, ज़) आदि |
संस्कृत व्याकरण के अनुसार पंचम वर्ण का लोप होने पर अनुस्वार का प्रयोग किया जाता है, यदि पंचम वर्ण से अंत होने वाले शब्द के बाद  स्वर आये तो अनुस्वार (ं) का प्रयोग न करके अनुनासिक व्यंजन का प्रयोग किया जाता है यथा अहम् पि (म्+अ) लिखा जाएगा किन्तु पंचम वर्ण के पश्चात व्यंजन हो जैसे  अहं गच्छामि (म्+ग) लिखते समय अनुस्वार (ं) का प्रयोग किया जायेगा |
एक मान्यता यह भी है कि व्याकरण पर अत्यधिक बल दिए जाने से भाषा का विकास रुक जाता है काफी हद तक यह सही भी है | पाणिनि व्याकरण बिलकुल वैज्ञानिक व्याकरण कहा जाता है किन्तु सभी नियम न तो याद रहते हैं और न सामान्य जन उसका पालन कर सकता है और लेखन के आँचलिक स्वरूप का भी अपना महत्व है |
कई बार  अमुक शब्द प्रचलन में आगया है या मान्य है कहकर भी शब्द प्रयुक्त होते हैं और इसी क्रम में  मिलते जुलते शब्दों से सम्बंधित  प्रयोग भी शुरू हो जाते हैं ऐसे में कुछ शब्दों के बारे में भ्रामक स्थिति भी उत्पन्न होती है | प्रामाणिकता का अपना महत्व है और इस खोज में बहुत सी नई व रोचक बातें भी सामने आती हैं जैसे सन्न्यासी शब्द देखकर मैं चौंक गयी क्योंकि इससे पहले यह मेरे सामने कभी इस रूप में नहीं आया था इसका कारण यह बताया गया  कि यहाँ सम् + न्यासी की संधि हुई है और जब दो अनुनासिक व्यंजन एक साथ आते हैं तो प्रथम स्वर रहित अनुनासिक व्यंजन मूल रूप में ही लिखा जाता है | इस प्रकार संन्यासी के स्थान पर सन्न्यासी को सही माना जाता है किन्तु प्रचलित रूप संन्यासी है अत: मान्य है |
भाषाविज्ञानियों ने भाषा को बहता नीर कहा है इसमें अन्य धाराएँ जुड़कर इसको समृद्ध बनाती है किन्तु यह ध्यान भी रखना होगा कि यथासंभव इस धारा को प्रदूषित होने से बचाया जाए व नए विकल्पों के द्वार भी खुले रहें |

*****

विविध स्तरीय पुस्तकों एवं विद्वजनों से चर्चा पर आधारित  

Tuesday, January 14, 2014

उलटी शिकायतें


महफ़िल की असलियत ये दिल पहचान तो गया

समझे गए मसीहा वो क्यूँ जान तो गया

पुरजे उड़ा के जब मेरी शख्सियत के कहा

उलटी शिकायतें हुई एहसान तो गया 



(तजमीनी कता : उलटी शिकायतें हुई एहसान तो गया)

Saturday, January 11, 2014

'जानता कौन है पराई चोट'

वज्न
2122   1212   22

पैरवी मेरी कर न पाई चोट

पास रहकर रही पराई चोट



फलसफ़े अनगिनत सिखा देगी

अस्ल में करती रहनुमाई चोट



महके चन्दन घिसें जो सिल पर तो

रोता कब है कि मैनें खाई चोट



सब्र का ही मिला सिला हमको

सहते रहकर मिली सवाई चोट



तन्हा ढ़ोता है दर्द हर इंसाँ

क्यूँ तू रिश्ते बढ़ा न पाई चोट
 

रस्म केवल मिज़ाजपुर्सी भी

'जानता कौन है पराई चोट'



उठ ही पाये न देख ही पाये 

मुस्कुराई कि खिलखिलाई चोट 


***
तरही मिसरा आदरणीय  फ़ानी बदायुनी साहब की ग़ज़ल से 

Sunday, January 5, 2014

पापा कहते हैं बड़ा काम करेगा


अब भी झांकती हैं
चश्मे के पीछे से वर्जनाएं
अभिलाषाएं आज भी
क़ैद हैं मुठ्ठियों में
जिन्हें बगल में दबाये
खड़े होते हो तुम
परछाइयों की तरह
कि जब भी चाहता हूँ कोई
लक्ष्मण-रेखा लाँघना
सोचता था हो जाऊँगा बड़ा
इतना कि मेरा बेटा
नहीं ताकेगा पडोसी की
लाल साईकिल
भरा रहेगा फ्रिज
चाकलेट टॉफी से
व कमरा उन खिलौनों से
जिन्हें हम देखा करते थे दूर से
कमरा आज वाकई भरा है
खिलौनों से
जहाँ तुम्हारा लाडला पोता 
बैठा है रूठा हुआ
कि दिलवाया नहीं प्ले-स्टेशन
और ना ही देता हूँ उसे
स्कूटर चलाने की इजाजत
क्योंकि महज सातवीं में है वो
और कमरे की दहलीज पर
अपनी ऊष्मा से
बर्फ पिघलाते हुए तुम
उसे सहलाते समझाते
दे रहे हो सांत्वना मुझे
कि कामनाओं के असीम आकाश से
अनुकूल सितारे चुन लेना ही
होता है
बड़ा काम

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