Saturday, December 6, 2014

कुछ अजब तौर की कहानी थी

ख़्वाब सहलाती इक कहानी थी
रात सिरहाने मेरी नानी थी


रंज ही था न शादमानी थी
"कुछ अजब तौर की कहानी थी"

वो जो दिखती हैं रेत पर लहरें
वो कभी दरिया की रवानी थी

था जुदा फलसफा तेरा शायद
मुख्तलिफ़ मेरी तर्जुमानी थी

ये बची राख ये धुआं पूछे
जीस्त क्या सिर्फ राएगानी थी

कट गया नीम नीड़ भी उजड़े
भींत आँगन में जो उठानी थी

अब गुमाँ टूटा आखिरी दम पर
चिड़िया तो सच ही बेमकानी थी


तरही मिसरा . "कुछ अजब तौर की कहानी थी"....आदरणीय मीर तकी मीर साहब के क़लाम से

10 comments:

  1. ख्वाब सहलाती इक कहानी थी
    रात सिरहाने मेरी नानी थी
    था जुदा फलसफा तेरा शायद
    मुख्तलिफ़ मेरी तर्जुमानी थी

    वाह, बहुत ख़ूब....

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-12-2014) को "FDI की जरुरत भारत को नही है" (चर्चा-1821) पर भी होगी।
    --
    सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुन्दर ग़ज़ल बनी है.

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  4. था जुदा फलसफा तेरा शायद
    मुख्तलिफ़ मेरी तर्जुमानी थी ..
    वाह लाजवाब शेर इस ग़ज़ल का ... और गिरह भी कमाल की लगाईं है आपने ...

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  5. कमाल की पंक्तियाँ हैं ..... बहुत सुन्दर

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  6. मीर तकी मीर साहब की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

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    1. रचना मीर साहब की नहीं है बस एक पंक्ति "कुछ अजब तौर ...." उनकी है उसे आधार बना कर मेरे द्वारा ग़ज़ल लिखी गयी है इसे तरही ग़ज़ल कहते हैं

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  7. ये बची राख ये धुआं पूछे
    जीस्त क्या सिर्फ राएगानी थी

    ख़ूबसूरत ग़ज़ल, सुंदर अंदाज़ !

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  8. . बहुत सुन्दर रचना।

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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