Friday, November 15, 2013

ग़ज़ल





ग़ज़ल

मेरे लिए बहार का मौसम रवां है अब
काँधे हवा के रख दिया अपना मकां है अब

परवाज़ नापती परों को तौलती फिरे
पलकों पे लड़कियों के ठहरा आसमां हैअब

खामोश लब झुकीं रहीं नज़रें तेरी सदा
तालीम इक दुआ रही खुद पर गुमां है अब

बिंदास तेवरों की तेरे ताब कुछ अलग
जो बदगुमां हुआ था कभी हमजुबां है अब

उन्वान हम पुराने बदल देंगे जोश है
लिखनी उफ़क पे  हमको नई दास्तां है अब

रक्खे चिराग़ हैं सभी आँचल की ओट में
जाकर हवा से कह दो इरादे अयां है अब

छाले मिले तो हमने सहेजे सजा लिए
वो आसमान देखो खिली कहकशां है अब

नाज़ुक ख़याल थी कभी तितली हसीन थी
जो धूप में तपी तो बनी सायबां है अब

टिकना बुलंदियों पे न आसां हुआ कभी
तौफ़ीक़ जर्फ़ का तू मगर तर्जुमां है अब
                      
                          -वंदना सीकर
( उन्वान- शीर्षक ; अयां-स्पष्ट ; कहकशां- सितारों का समूह /गैलेक्सी ; सायबां -छाया देने वाला; तर्जुमां-अनुवादक; जर्फ़ -हैसियत

15 comments:

  1. भावो का सुन्दर समायोजन......

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  2. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल !!

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  3. बहुत सुन्दर ग़ज़ल !!
    वन्दना जी !आप के ब्लोग पर एक लिंक "अर्थ खोजें"
    क्या आप इसका URL हमें दे सकती हैं प्लीज ?
    मेरा ब्लॉग लिंक है
    http://vichar-anubhuti.blogspot.in
    नई पोस्ट मन्दिर या विकास ?
    नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ






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  4. वन्दना जी एक बार फिर आपकों परेसान कर रहा हूँ| बात यह है कि आपका दिया हुआ URL को लेआउट में जाकर ऐड गजेट के थ्रू इंस्टाल किया परन्तु शब्दकोष नहीं खुल रहां है | कृपया बताएं कैसे इंस्टाल करें ताकि शब्द कोष खुले जैसे आपके ब्लॉग में खुलते हैं !
    सादर !

    कालीपद "प्रसाद"

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  5. बहुत बहुत आभार वन्दना जी .इंस्टाल हो गया |

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  6. बहुत बढ़िया गज़ल , व प्रस्तुति , धन्यवाद
    नया प्रकाशन --: प्रश्न ? उत्तर -- भाग - ६

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  7. आदरणीया वंदना जी आपकी इस ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है ..बेहतरीन चुनिन्दा शब्दों के कारण मैंने इसे कई बार पढ़ा ..आपके ब्लॉग पर उदरु शब्दकोष है क्या मैं इसे अपने ब्लॉग पर जोड़ सकता हूँ ..आपको ढेर सारी बधाई के साथ ..सादर

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  8. बहुत ही लाजवाब गज़ल ... हर शेर चुनिन्दा ... कहाँ की मजबूती कमाल की है ... मज़ा आया पूरी गज़ल पढ़ने के बाद ...

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  9. लाज़वाब...हरेक शेर बहुत उम्दा..खूबसूरत ग़ज़ल...

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  10. वाह! बढ़िया कलम चला रही हैं गजल पर.. लिखते रहिये..शुभकामनाएं..

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  11. मेरे लिए बहार का मौसम रवां है अब
    काँधे हवा के रख दिया अपना मकां है अब।

    परवाज़ नापती परों को तौलती फिरे
    बेफ़िक्र आसमां में उड़े लड़कियां हैं अब।

    बहुत अच्छी ग़ज़ल।
    भावों की गहनता ध्यान आकर्षित करती है।

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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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