शब्द -नाद का बोध नहीं
मैं कविता कैसे रच पाऊँगी
ताल सुरों का ज्ञान नहीं
मैं गीत भला क्या गाऊँगी
क्षितिज पार पहुंचे बिन कैसे
इन्द्रधनुष छू पाऊँगी
खिले फूल भ्रमरों के जैसा
गुंजन कैसे कर पाऊँगी
जी चाहे खुशियाँ हर घर -आँगन बांटू
छोटे से आँचल में सबके अश्रु समेटूं
हो जाए जब अंत सकल उत्पीडन का
खुद मर मिट कर अंश बनूँ नवजीवन का !