उद्देश्य मेरा भीड़
रिझाना तो है नहीं
जो चब चुका उसी को
चबाना तो है नहीं
निर्दोष है मरीचिका
बदनाम क्यूँ भला
जब सिन्धु सी हो
प्यास अघाना तो है नहीं
उलझाते हैं नियम भले
ही लाख नित बने
परिणाम इनका गाँठ
छुड़ाना तो है नहीं
उनको सलाम तीर चला
कर जो यह कहें
‘अपना भी कोई खास
निशाना तो है नहीं ‘
अब दे रहे हैं दोष
हवाओं के जोर को
क्यूँ कट गयी पतंग
बहाना तो है नहीं
आकर करे वो बात भला किसलिए कहो
कारूं का मेरे पास खज़ाना तो है नहीं
फिर फुरसतों में बैठ
खंगालेंगे चाँदनी
वादा किया था कोरा
बयाना तो है नहीं
‘अपना भी कोई खास निशाना तो है नहीं ‘
तरही मिसरा : शायर जनाब मुज़फ्फर हनफ़ी साहब की एक ग़ज़ल से